आत्महत्या करना दरअसल कोई नहीं चाहता लेकिन उसकी मानसिक स्थिति का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते है कि वो कितना अकेलापन फ़ील कर रहा होगा. हम बस प्रवचन बांटना शुरू कर देते है, 'खुश रहा करो, दूसरों से उसकी तुलना करना शुरू कर देते है, जो कि गलत है'। आत्म हत्या से इंसान हर उलझन से मुक्त हो जाना चाहता है। उसे उस वक्त सिर्फ अपनी उलझने ही नजर आती है। वो उस वक्त अत्यधिक डिप्रेशन में होता है, और बहुत ही ज्यादा अकेलापन महसूस कर रहा होता है। उसे उस वक्त किसी दोस्त या किसी अपने की जरूरत होती है, सबसे ज्यादा। लेकिन उस वक्त उसके पास कोई नहीं होता सिवाय उसकी उलझनों के, हम सब बहुत अजीब है बस प्रवचन बांटने में लगे रहते है जब तक खुद मसीबत से घिर अकेले न हो जाये। बातें बड़ी- बड़ी करते है लेकिन मदद के वक्त नजरें चुरा लेते है। जब भी किसी का व्यवहार नकारात्मकता से भर जाए, वो बहुत अकेलापन महसूस करे, अजीब तरह की बातें करें, सबसे कट जाए, खुद को एक अलग ही दुनिया का प्राणी महसूस करे, हार की बातें करे, उदासी से घिरा हुआ हो, उसे हल्के के मत लीजिए उसका दोस्त बन उसकी मदद कीजिये, बिना किसी प्रवचन और बेमतलब की सलाह...